अध्याय 31 ॥ जिंदगी से मुस्कुराते हुए मिलो ॥

25 नवम्बर 2012, मैने थोड़ी बहुत बंसी बजानी भी सीखी और थोड़ा गज़लों का ज्ञान भी होता गया। और मैने बस यही सिखा –

॥ जिंदगी से मुस्कुराते हुए मिलो ॥


चाहे भीड़ में तन्हा मिलो, चाहे ख्यालों में बतियाते हुए मिलो

जब भी मिलो जिंदगी से जनाब ज़रा सा मुस्कुराते हुए मिलो।


भले तड़पो पर मत जताओ की ये बाज़ी मैं हार चुका हूँ तुझसे

सर उठाके, आँखे डाल कर , थोड़ा सा और इतराते हुए मिलो।


दिल में दर्द हो पीर बसी हो, पर चेहरे पे एक दमकती हॅंसी हो

उसके काँटो भरे जिस्म को थोड़ा कसके गले लगाते हुए मिलो


हरपल मेहनत पर उसकी शिकन भी न हो, गुमाँ भी नहीं

जिंदगी से मिलो तो हमेशा उसे अपने ज़ख्म छिपाते हुए मिलो


ग़र मेरे खुदा ने मेरी किस्मत लिखी तो वो बुरी कैसे हो गई

हर फैसले को अपना , सजदे में उसके सर झुकाते हुए मिलो


मिलो उसे तो कुछ यूँ मिलो की वो भी मिलने से डरे तुमसे

रस्ते से हटकर जिंदगी सलाम करे ऐसे हौसले दिखाते हुए मिलो


सूरत पे गरूर हो ग़र उसे तो कह देना मौत की आँखे नहीं होती

इम्तिहानों के आँसुओं से अपनी सीरत चमकाते हुए मिलो


पर जब भी मिलो जिंदगी से जनाब ज़रा सा मुस्कुराते हुए मिलो।