अध्याय 22 ॥ सफलता का महामंत्र ॥

18 फरवरी, 2015 मैं अब IAS की तैयारी कर रहा था और उसके लिये मैनें सारा इतिहास, भूगोल , विज्ञान छान मारा और जाना की ससांर में महान कार्य करने के लिये अपने प्राणों का भी दान करना पड़ सकता है।


॥ सफलता का महामंत्र ॥


जिवित हो गर या तो अपने या संसार के काम आ रहे हो वरना तुम सड़ चुके हो

जीवन में अगर जीवन से बड़ा कुछ करना चाहो तो मान लो कि तुम मर चुके हो॥


क्यूँकि लाशों को थकान नहीं होती, ना लाश कभी शिकायत करती हैं।

ना जिम्मेदारी लेती है किसीकी, ना लाश कभी मुहब्बत करती हैं।

तुम सोचते हो कि तुम बहुत ताकतवर हो, इस बदहवास जवानी में

पर जब वक्त गला पकड़कर डुबोता है हालात के पानीं मे

तब कोई साहस काम नहीं आता जब जिंदगी कोड़े बरसाती हैं

व्यक्ति और उसका गुरूर दोनो मर जाते है, केवल एक लाश ही डट पाती है।

अपना नाम तो इतिहास में सब लिखना चाहते हैं

पर ग़र मात्र नाम नहीं पूरा अध्याय लिखना चाहो तो मान लो कि तुम मर चुके हो॥


क्या जवानी, क्या दौलत, क्या प्रेम, क्या दोस्त और क्या ख्याती,

ये तो जीवित और जीवंत लोगों के शब्द हैं

ना आशा, निराशा, ना अहंकार, ना रिश्ते, ना थोड़ा सा भी आत्म सम्मान हो

खुद की कोई सुध ना हो, सालों-साल सिर्फ एक लक्ष्य का ज्ञान हो

जीवन ठोकरों पे हो और ना कोई इबादत, ना कोई भगवान हो

24 घँटे सातों दिन जीवनभर निरंतर केवल ध्येय पर ही ध्यान हो

जो भी पैदा हुआ है उसे तो मरना ही है

पर ग़र मरकर भी अमर होना चाहो तो मान लो कि तुम अब से मर चुके हो॥


छोड़ दो तुम हर उस ख्याल, दोस्त और बात को जो लक्ष्य से दूर कहीं जाता हो।

ध्यान भटकाने के हर साधन को छोड़, चल दो एकाँतवास में जहाँ कोई ना तुम्हे सताता हो

जब तुम्हे खाने, पीने, सोने, उठने, बोलने, चलने, हँसने, रोने की कोई सुध रहे नहीं

जब कर्म तुम्हारे अस्तित्व पे भारी पड़ जाये। बात कर्म की हो चाहे तुम रहो या नहीं

सवाल ये ना रहे की इससे मुझे क्या मिलेगा? सवाल हो की ये पूरा होगा की नहीं?

तब तुम जो चाहो वो मिलेगा पर तुम जवाब के सिवा और कुछ चाह सकोगे या नहीं।

जमीनों पे, पहाड़ों पे , लोगों पे तो हजारों ने राज किया है।

पर ग़र तुम अपने मुकद्दर पे राज करना चाहो तो मान लो कि तुम मर चुके हो॥


जब तुम उठोगे उपर इन खोखले शब्दों से तो जानोगे की ये दूनिया कितनी कमज़ोर है।

अपने ही बनाये धर्म, जाती, देश, रंग भेदों में बंधी बस एक नाज़ुक सी डोर है।

जब लोग तुम्हे पागल कहने लगे और उम्र साल दर साल अकेले कटने लगे।

जब तुम्हे फिर कुछ और अच्छा ना लगे और रिश्ते- नाते भी पीछे हटने लगे।

तब जब तुमपे कोई दिली, दिमागी, जिस्मानी या रूहानी बंधन नहीं होगा।

सिर्फ तब तुम अपनी पूरी ताकत लगा पाओगे और फिर कुछ भी असंभव नहीं होगा।

अरबोंभरी दुनिया में करोड़ो मृतनाम रोज़ दिखाई पड़ते हैं किसी अखबार के कोने में ।

पर ग़र अपनी मौत को राष्ट्रीयदिवस बनाना चाहो तो मान लो कि तुम मर चुके हो॥


मर चुके हो फाँसी पे झूलते हँसते गाते भगत सिँह की तरह

या चलती फिरती लाश बने किसी गृहस्थ संत गाँधी की तरह

मर चुके हो गरीबों को ढा़ढस बंधाती कँकालरूपी टेरेसा की तरह

या दफ्न हो चुके हो फिर किताबों के ढ़ेर में रामानुज की तरह

बन जाओ तुम वीर पराक्रमी बर्बरीक और कर दो अपना प्राण-दान

ये सफलता का महामंत्र है कि तुम जियो केवल प्राणहीन की तरह

क्यूँकि जीवन एक सार्थक मिथ्य है और मृत्यु एक शाश्वत सत्य

परंतु इन दोनो के बीच सफलता एक अनंत कल्पवृक्ष है

इसलिये छोटी सी जिन्दगी से बड़ा कुछ करना चाहो तो मान लो तुम आज से मर चुके हो।

जीवन में अगर जीवन से बड़ा कुछ करना चाहो तो मान लो कि तुम मर चुके हो॥