अध्याय 37 ॥ कुछ भी जरूरी तो नहीं ॥
17 मार्च, 2015
हर काम का फल हाथों-हाथ मिल जाये जरुरी तो नहीं
हर मोड़ पर किस्मत तेरा साथ निभाये जरूरी तो नहीं।
शैतान दुहाई देता है तुझे कि तू गरीब है, परेशान है
पर हर भूखा किसी की रोटी चुराये जरूरी तो नहीं।
ये तेरा ग़म है कि सारी ऊम्र तूने खुदा ढूँढनें में गवाँ दी
पर अब खुदा भी तुझसे मिलना चाहे जरूरी तो नहीं।
सारे दिन में शायद बस एक पल को देखता है वो तुझे
अब वो मनहूस पल इसीपल ना आये जरूरी तो नहीं।
तूने ताऊम्र किसी एक किताब को उसका हुक्म माना पर
मरते हुये तुझे उसी किताब से आँका जाये जरूरी तो नहीं।
यूँ तो ज्ञान, जिन्दगी के सारे तजूर्बों का निचोड़ हैं लेकिन
हर तजूर्बे को अब खुद ही कमाया जाये जरूरी तो नहीं।
सारे जहाँ कि गरीबी को छोड़, जा किसी कबूतर को पाल
खुदाई के खातिर तू सिर्फ खुद ही को सताए जरूरी तो नहीं।
हर काम का फल हाथों-हाथ मिल जाये जरुरी तो नहीं
हर मोड़ पर किस्मत तेरा साथ निभाये जरूरी तो नहीं।