अध्याय 65 ॥ बिना पँखों की उड़ान ॥

29 जून, 2016


॥ बिना पँखों की उड़ान ॥


ना जान है, ना मान है

जग मृत्यू के समान है

बोझ गिरा दिए सभी

अब कुछ नहीं सामान है

हल्का कर बदन उड़ूँगा

बाँध कर कफ़न उड़ूँगा

तोड़ तेरी जंजीरों को

सपनों के चमन उड़ूँगा

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा॥


तुम देखना दिखाऊँगा

मैं रोया था रूलाऊँगा

औकात से तुम्हारी दूर

मैं वो मुकाम बनाऊंगा

ये जिस्म मेरा था कहाँ

मैं आऊँगा मैं जाऊँगा

मुझे कैद तू क्या करेगा

मैं पंछी था उड़ जाऊँगा

आत्मा के पंखों से मृत्यू के ऊपर उड़ूँगा॥

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा॥


शरीर आग पे धरे नहीं

जो दर्द से डरे नहीं

वो आदमी क्या आदमी

जो रोज रोज मरे नहीं

रे काल जटायु तैयार है

रावण तू सीता हरे नहीं

नामुमकिन है अब ये योद्धा

अध्याय नया गड़े नहीं

मृत्यू से पहले मगर नाम अपना कर उड़ूँगा॥

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा॥


तलवार की धार पर

तू मस्तकों से वार कर

गलती बार बार कर

पर कटने से इंकार कर

शक्ल रहती बस जवानी

हुनर रहता सारी उमर

लहू से डर रहा तू क्या

जिगर कर दे तर-ब-तर

खंजरों को मस्तकों से मैं काटकर उड़ूँगा॥

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा ॥


जन्म-कर्म का घड़ा है

भाग्य ये रोड़ा बड़ा है

जिंदगी की रेस में

बहुत पीछे तू खड़ा है

तोड़ूँगा सबका गरूर

मैं ऐसे दौडूँगा हुजूर

सदी के महानायकों में

नाम मेरा होगा जरूर

अगली सदियाँ तारिख को कहेंगी उस सा उड़ूँगा

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा॥


कराल ताल तीनों काल है

रणभूमि लाल कपाल है

बिसात खुद हलाल है

हर चाल एक सवाल है

पर ज्ञान, ध्यान, बाण से

हल होता जीवन जाल है

ये योगी धुनी छोड़ेगा नहीं

चाहे मृत्यू का भूचाल है॥

महाकाल राग पर मैं अट्टहास ताल धर उड़ूँगा

मैं उड़ूँगा, हाँ उड़ूँगा, नोच कटे पर उड़ूँगा

देखना एक दिन तुमको दिखाकर उड़ूँगा॥