अध्याय 35 ॥ केदारनाथ बाढ़ ॥

09 जुलाई 2013, - उत्तराखण्ड में एक बहुत बड़ी त्रासदी आई। सरकार ने धारी देवी का मंदिर बदला, उससे केदारनाथ में बादल फट गया। कई लोग मरे और सरकार ने नाममात्र कार्य किया। उस बीच भी लोंगों ने पैसे लूटे, हजार रूपये के बिस्कुट बेचे, मरे लोगों की चेने निकाल ली, और लाशें ले जाने के लिये पैसे से हैलीकॉप्टर चलाए । उस त्रासदी पे मैं चुप कैसे रह सकता था । मैने इसे अपने पेज पे पोस्ट किया और पाया कि लोगों को बहुत पसंद आई। ये भी पाया की कई मुस्लिम पेजों ने उस पर से भगवान हटा कर खुदा लिख दिया था । हॅंसी भी आई कि जो मैं कहना चाहता था वो किसी को समझ नही आया ।


॥ केदारनाथ बाढ़ ॥


ताऊम्र खोजा तो नहीं मिला पर आज मैंने भगवान देखा

दस दिन की भूख के बाद जो थाली में कुछ सामान देखा॥


जिसने सरकाई थी ना जानू वो मंदिर जाता था या मस्जिद

मैने तो बस थाली के पिछे खड़ा एक इन्सान देखा॥


एक भी साबुत रोटी ना थी सब बासी टुकड़े थे थाली में

कुछ धरती कठोर देखी, कुछ पेट सा खाली आसमान देखा॥


फिर खाया मैंने मन मारके आखिर करता भी तो क्या

पहले जुबाँ देखी, फिर भूख, फिर खुद को बहुत बेजुबाँ देखा॥


लाला से माँगे थे कल कुछ बिस्कुट ही दे देता शायद

पर उसको चाहिये थे जो हज़ार रूपये मैं यहाँ कहाँ देता॥


लाशों से ढ़का हुआ था शायद घाटी थी या पहाड़ था वो

सुबह से रात तक बारिश में उसे यूँही डूबा हुआ देखा॥


ऊपर आजा रहे थे उड़न खटोले हरपल लाशों को लेकर

नीचे उनको पुकारता हुआ कंगालों का एक जलसा देखा॥


मै कमाता हूँ, खाता हूँ, सरकार से क्या लेना मुझे

आखिर कितना झूठा था मुझे खुद पे ये गुमाँ देखा॥


घर पर होता तो टी.वी. पर देखता इन्हे मैं भी

फिर चाय पिता और भूल जाता मैने क्या यहाँ देखा॥


अब जब हकीकत गुज़री तो फिर आँखों से ना देखा मैंने

सारे हालातों कों दिल-ओ-जिस्म के दर्मियाँ देखा॥


मैं भी देखा करता था दौलत के सोने चाँदी के सपने

आज नींद में क्यूँ ना जाने रोटियों का मकाँ देखा॥


चुभते हुए एक पंजे से उसन मेरे कंधे को पकड़ा

मुढ़ा तो धोती में लिपटा हड्डियों का ढाँचा देखा॥


आँसू सूखे हुए थे, आँखे कुछ डरी हुई थी शायद

घुटने पकड़े हुए अपने भगवान को सहमा-सहमा देखा॥


बोली, “ बेटा तुझे चटनी भी देती गर होती मेरे पास

तुझे वही दिया, है जैसा मुझे ये पापी जहाँ देता॥


मेरी गोद में सर रख हमेशा को सो गया वो

जो कहता था माँ है कभी नौजवान इतना जवाँ देखा॥


लाया था बड़े प्यार से कहकर धाम घुमाऊॅंगा माँ

किस्मत फूट गई जब से वो बादल कलमुआँ देखा॥


ऊपर पानी, नीचे पानीं, हर तरफ मौत और भूखे बच्चे

दो निवाले की खातिर ठंडा होता उसका सीना देखा॥


कान काटकर कुण्डल निकाल लिये बेटी के भी

चारो तरफ सिर्फ लालच का लाल तुफाँ देखा॥


मैं कहाँ से उठा कर लाती उन दोनो को आखिर

रोई पर फिर वहीं छोड़ आई दोनो को मैंने था जहाँ देखा॥ ”


दुप्पट्टे के पल्लू से आँसू पौंछती वो लाचार माँ देखी

फिर मीलों फैला ठंडा, अंधेरा, कयामत सा समाँ देखा॥


आज देखा मैंने तो सब कुछ धुआँ-धुआँ देखा

शब्दों में बहाने देखे कुरसियों पे बईमाँ देखा॥


मंदाकिनी तट पर लथपथ बिखरे झूठे आदर्श देखे

सच देखा, पर सच्चाई को बहुत ही तन्हा देखा॥


ताऊम्र खोजा तो नहीं मिला पर आज आखिरकार भगवान देखा……