अध्याय 58 ॥ हँसी की खोज ॥
25 अप्रैल, 2016
हँसी क्या होती है कोई तो बताओ हमें
इस हुनर से भी कभी रूबरू कराओ हमें ॥
मुद्दतें गुजर गई अब हमें मुस्कराए हुए
कोई इस अदा को फिर से सिखाओ हमें ॥
बरसों बाद हम से मिलकर वो कहने लगे
एक बार तो फिर हँस के दिखाओ हमें ॥
हम बस देखते रहे उनकी पुरानी सूरत को
कह ना पाए की पहले गले तो लगाओ हमें ॥
हमें उनकी आवाज का चढ़ता है नशा बड़ा
इस मदहोशी से अब कोई ना जगाओ हमें
हमारे हर शेर पर वो झूम के हँसते गाते थे
वो खिलखिलाहट एक बार तो सुनाओ हमें ॥
वो हमारी रुह तक में घर कर चुके हैं अब
तुम फिज़ूल दुनियादारी ना सिखाओ हमें ॥
सुना है लोग कभी खुश भी हुआ करते हैं
किसी जन्म में तो किस्मत से बचाओ हमें॥
इस कदर जीना भी कोई जीना है भला
मैं जिंदा हूँ ये अहसास भी कभी कराओ हमें ॥
दर्द जिंदगी में शायद इतने ना होते हमारे
इन यादों के साथ कब्र में अब दफनाओ हमें ॥
हँसी क्या होती है कोई तो बताओ हमें
इस हुनर से भी कभी रूबरू कराओ हमें ॥