अध्याय 52 ॥ कठपुतली ॥
18 फरवरी, 2016
आज खुदा भी मेरे हालात पे आँसू गिराता है
वरना फरवरी में क्यूँ पानी इतना बरसाता है ॥
लोग मुझे कठपुतली समझने लगे हैं अब तो
जब जिसका मन हो आता है खेल जाता है ॥
हर एक धागा किसी अलग आदमी के हाथ है
सारा समाज मुझ पर खुल के हुक्म चलाता है ॥
औरों की ताल पर नाचना कोई हम से सीखे
वही घिसा पिटा राग हमें रोज सुनाया जाता है ॥
तुमने प्यार से हाथ रखा फिर मुझे दबाने लगे
अब छोड़ दो के सर जमीन में धँसता जाता है ॥
मुझे कितना ही दर्द हो ये परवाह अब है किसे
कठपुतली में कारीगर कहाँ कोई दिल बनाता है ॥
आदमी बदजुबान भले बने पर बेजुबान ना बने
बेगैरतों को यहाँ बस जूतों तले बिठाया जाता है ॥
ये गरीब बेकार जिस्म तू ही वापस रख मेरे मौला
बिन आजादी ये हमसे और नहीं उठाया जाता है ॥
आज खुदा भी मेरे हालात पे आँसू गिराता है
वरना फरवरी में क्यूँ पानी इतना बरसाता है ॥