अध्याय 53 ॥ आखिरी चिंगारी ॥

24 फरवरी, 2016


॥ आखिरी चिंगारी॥


डर मत के अभी सीने में कुछ अरमान बाकी हैं।

लथपथ से इस मुर्दे में अभी कुछ जान बाकी है॥


लंगड़ाता एक कबूतर रोता रहा अपने हालात पे

भूल गया वो की पँखों में मीलों उड़ान बाकी है॥


मैं उसे कस के गले लगाना चाहता हूँ बस एक बार

वो सूरत तो याद है पर जिस्म की पहचान बाकी है॥


मैं उसकी आवाज महसूस कर सकता हूँ हर लम्हा

पर मेरे कानों पे उनकी साँसों का तूफान बाकी है॥


मैं उसके बदन से इस कदर लिपट जाऊँ की

सब देखें उसकी रूह में मेरी रुह के निशान बाकी हैं॥


सब भूलकर मुझमें सिमट जा के मैं कहीं जा ना पाऊँ

तेरी मदहोशी मैं संभाल लूँगा अभी मेरा इमान बाकी हैं॥


मैं बचपन हूँ एक बार गया तो वापस कभी आऊँगा नहीं

आगे तेरी मर्जी मेरे दिल में तो एक ही मकान बाकी है ॥


सारी रात वो बंद कमरें में सिर्फ अकेले बतियाते रहे

कौन समझेगा इस दुनिया में अभी ऐसे इंसान बाकी है॥


माना कुछ नहीं बचा तो भी मैं रिश्ता तोड़ने दूँगा नहीं

तेरा वादा पूरा कहाँ हुआ अभी पूरी जुबान बाकी है ॥


मेरे बेटे तू सब की मत सुन तू बस इतना जान की

तेरी शक्सियत पर मुझे अभी बहुत गुमान बाकी है॥


ये किस्मत, ये दुनिया, ये कायनात खिलाफ हो तो क्या

भरोसा कर, इन पत्थरों में अभी भगवान बाकी है॥


सारी उमर हम लगातार आग से ही तो गुजरे हैं बस

अब तो इंतजार में हमारे बस आखिरी मसान बाकी है॥


डर मत के अभी सीने में कुछ अरमान बाकी हैं।

लथपथ से इस मुर्दे में अभी कुछ जान बाकी है॥