अध्याय 11 ॥ यादों को ज़हन में बसाए बैठे हैं ॥
2005, मेरे दोस्त ने एक बार पूछा लिया कि क्या मैं किसी से प्यार करता हूँ। मैंने उसे समझाया कि महसूस करने के लिए किसी के साथ होने कि ज़रूरत नहीं होती। बस ऐसे ही ये भी अस्तित्व में आ गई।
लोग पूछते हैं प्यार क्यों नहीं करता हूँ मैं?
कैसे कहूँ कि तेरी यादों को जहन में बसाए बैठे हैं
साथ तेरे हूँ हरपल, नहीं अकेला होता हूँ मैं
कौन कहता है, कि हम हरपल को तन्हाईयों में बिताए बैठे हैं….
है तेरा प्यार नज़दीक ही बैठा, कुछा पहचाना सा
तू नहीं हैं पास, आज मेरे, तो क्या?
सिर्फ इसलिए कि मैं तूझे छू नहीं सकता तो क्या?
तेरे जिस्म का अहसास, रग-रग में बसा है मेरे
इक चुभन जो रगों में है दौड़ी, शायद या सच में ही,
छूअन का अहसास है तेरे
तेरे हर अहसास को यूँही, दिल से अपने लगाए बैठे हैं।
तेरी यादों को जहन में बसाए बैठे हैं…..
जानता हूँ नहीं देखा तूझे आज तलक
पर कौन कहता है प्यार में देखना भी जरूरी है,
मैं नहीं मानता, शक्ल तो वासना की पहली निशानी है
है ग़र तू इस दूनिया में तो भी सही
ना हो ग़र इस जहाँ में तो भी सही
तुझसे मिलना तो एक जूनून है, पर ख़ैर!
शायद मेरी दिवानगी़ की हदें है यही
कि बस तेरी उम्मीद पर ही हम खुद को लुटाए बैठे हैं
तेरी यादों को जहन में बसाए बैठे हैं…..
तू बस गई है मेरी सोच में इस तरह
कि मैं दूनिया से कट गया हूँ
जुदा- जुदा सा रहता हूँ मैं सबसे,
जैसे अँधेरे तहखानों में फँस गया हूँ
बस तुझे देखने की चाहत में
ना जाने क्या- क्या सपने हम सजाए बैठे हैं
तेरी यादों को हर घडी़ जहन में बसाए बैठे हैं…..
बस यूँही बसाए बैठे हैं………………..।