अध्याय 28 ॥ वक्त ॥

3 नवम्बर 2010, कल रात मैं दिल्ली में बस स्टॉप पर खड़ा था, कोहरा भी था। पौंढ़ा घन्टा हो चुका था लगभग ज्यादा ही और मैं चिढ़ने लगा था। फिर जब मुझे बस मिली तो मैं अचानक ही खुश हो बैठा और मुस्काने लगा। मैं बस में जाते ही सब से बात करने लगा। आप उस छोटी सी खुशी को महसूस कर सकते थे मेरे चेहरे पे। तब मैने सीट पे बैठे हुए यही सोचते हुए दो पंक्तियाँ कही और बगल में बैठे व्यक्ति ने मुझे मिसरा पुरा करने को कहा। मैने उसे पूरा किया जो इस तरह हैं। असल में ये जीवनसत्य है जो हम अक्सर भूल जाते है। भले ही खु़शी हो या ग़म ये सदा याद रखना की –

॥ वक्त ॥


ज़िन्दगी में कुछ भी कभी हरपल नहीं रहता

जो आज साथ होता है तुम्हारे वो कल नहीं रहता।


मैं फ़िज़ूल रोया करता था लम्हों पे दशको पे

समझ आया अब की वक़्त खुद भी सदा प्रबल नहीं रहता।


मरते हैं इसके भी पल जो बहते हैं इसकी धाराओ में

सदा को ठहरा हुआ कोई भी इसका पल नहीं रहता।


जीवनचक्र निरंतर है, मत कोस तू अपनी किस्मत को

इस दौर में ये दरिया किसी के लिये कल-कल नहीं बहता।


तुम्हे पता ही नहीं वक्त का दूसरा नाम ही जिंदगी है

यूँहीं तुम कहतें हो तुम्हारे पास ये किसीपल नहीं रहता।


इस दूध की धारा को मैंने पूजा भी दिए भी सिराये

पर जब से सागर में मिला फिर वो गंगाजल नहीं रहता।


कितना लालची हूँ की जिसके सजदे किये नवाज़ा भी

वो जिस दिन खारा हुआ ठोकरों के भी काबिल नहीं रहता।


ज़िन्दगी केवल मौत से मौत के सफ़र का नाम है

और बंजारों का कोर्इ् ठौर—ठिकाना ऊम्रभर नहीं रहता।


तू हाथों की लकीरों पे चला तो नदी जैसा भटकता रहा

तूने खुद को कभी नहीं खोजा तभी तू सफल नहीं रहता।


और तू मुझे मसीहा मत समझ मैं खुद विफल हूँ हालातों से

हाँ मगर हौंसला अब तक नहीं हरा वर्ना ये ग़ज़ल नहीं कहता।


॥ज़िन्दगी में कुछ भी कभी हरपल नहीं रहता॥

॥जो आज साथ होता है तुम्हारे वो कल नहीं रहता॥