अध्याय 46 ॥ आदत ॥

06 नवम्बर, 2015


॥ आदत ॥


बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।

तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥


देख हमें कुछ नहीं हैं फिर भी बेफिक्र खुशहाल हैं

क्या है के हमें रिश्ते आहिस्ता पिरोने की आदत है ॥


तेरे सारे सोने चाँदी रुपए सिक्के उसे नहीं बहका पाए

आखिर दुधमुहे बच्चे को सिर्फ खिलोने की आदत है ॥


आदत कब शौक से लत बन जाए ये कोई नहीं जानता

हमें अपने ज़मीर को आँसुओं से धोने की आदत है ॥


तू लाख दबा जिंदगी पर हम टूटने वालों में से हैं नहीं

इन आँखों को अब तक ख्वाब सँजोने की आदत है ॥


मेरे दोस्त बनाना तो मेरी चिता को थोड़ा बड़ा बनाना

जानता है ना, हमें थोड़ा फैल के सोने की आदत है ॥


तुम्हें बूँद-बूँद, अपने जिम्मेदारियाँ जोड़ने की जरूरत है

हमें कतरा-कतरा अपना सब कुछ खोने की आदत है ॥


मेरे कानों को सिर्फ उस बाँसुरी की धुन की तलब है।

मेरी आँखों को सिर्फ उस साँवरे सलोने की आदत है ॥


बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।

तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥