अध्याय 62 ॥ अलग रास्तों का सफर ॥

19 जून, 2016


॥अलग रास्तों का सफर॥


मैं जानता हूँ तुम्हारे बिन बहुत पछताऊँगा मैं

पर तुमको भी किसी दिन तो याद आऊँगा मैं ॥


परख लोगे इस जमाने को जब तसल्ली से तुम

कोई आसूँ बनकर उस दिन बहुत सताऊँगा मैं॥


किसी के लबों में, छुअन में, बातों मे, रातों में

एक लम्हे को सही, कहीं तो नजर आऊँगा मैं ॥


वो कहतें हैं रूप-रंग से ही प्यार होता है बस तो

काली कोयल के गीत भला कैसे छिपाऊँगा मैं ॥


हमें उनका कहा एक एक लफ्ज़ जुबानी याद है

उनकी आवाज को बताओ कैसे भूलाऊँगा मैं ॥


सोचना भी मुश्किल है की ये दिन कटेंगे कैसे

दुनियादारी इस दिल को कैसे समझाऊँगा मैं ॥


कटने को जिंदगी अकेले भी कट सकती है मगर

फिर किस के आगोश में थक के सो पाऊँगा मैं ॥


हमसफ़र के साथ हमकदम ना बन पाए तो क्या

चलो यादों में ही सही ताउम्र साथ निभाऊँगा मैं॥


इन दिनों के नाम पे किसी उम्र में मिलना जरूर

हाल-ए-जिंदगी इत्मिनान से तब बताऊंगा मैं ॥


फिर बताना ये फैसला आखिर था कितना अच्छा

पर उस दिन वो जवाब बोलो किसे सुनाऊंगा मैं ॥


जब जिंदगी अलग रास्तों का सफर बन जाए तो

किस तरह दुबारा खुद को खुद से मिलाऊँगा मैं ॥


जा तुझे खुशियाँ मिलें, मुकाम मिलें, सपनें मिलें

तेरे हर रास्ते पर जा सिर्फ दुआएँ बरसाऊँगा मैं॥


मैं जानता हूँ तुम्हारे बिन बहुत पछताऊँगा मैं

पर तुमको भी किसी दिन तो याद आऊँगा मैं ॥