अध्याय 12 ॥ मत कर भरोसा मुझ पर ॥

2006, इसकी भूमिका बहुत ही लम्बी हो सकती है। साफ शब्दों में दो प्रेमियों के बिछोड के बारे में जहाँ लड़का चाह कर भी इज़हार-ए-मुहब्बत नहीं कर सकता। इसे समझाना बहुत मुश्किल है पर अगर थोड़ा सा नज़रिया बदलो तो आपको सच में पसंद आएगी।

॥ मत कर भरोसा मुझ पर ॥


मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना

के तू खुद को मुझसे बचा ना पाए

कत्ल तेरा हो मेरे हीं हाथों मगर

तू देख कर भी ख़ुद को भरोसा दिला ना पाए

ना कह पाँऊ कितना प्यार तुझे करता हूँ मैं

पर देख कर तुझे दिन-रात आँहें भरता हूँ मैं

तू ना जाने, तेरे चेहरे की कशिश जानता हूँ मैं

तेरे चेहरे के सामने होने पर भी, चुप रहता हूँ।

मैं तड़पता हूँ अन्दर ही अन्दर,

तू ना जाने पल-पल याद करके तूझे,

तिल-तिल कैसे मरता हूँ मैं

जब भी तू मेरे गले से लिपटती है

वो मखमली छुअन, वो हल्की-हल्की खुशबू साँसों में सिमटती है

हटा देता हूँ तुझे, नहीं भरता हूँ बाँहों में

डर रहता है कि कल से कहीं हम तूझसे फिर नज़रें मिला ना पाँयें

मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना


जानता हूँ, है तू उस हसीं चाँद की तरह

रात के अंधेरे में ही जिसे मिलना पडता है

इक मामूली इंसान हूँ मैं, कितनी सीड़ीयाँ, कितनी ही छलाँगे,

तुझ तक नहीं पहुँच पाऊँगा, डरता हूँ

के बिन पाए तुझे जि़ंदगी कँही यूँहीं चली ना जाए

मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना


मानता हूँ कि दर्द होता है बहुत अगर प्यार ना मिले

दर्द बढ़ता है अगर आशिक मिल जाए पर दिलदार ना मिले

हदें पार हों जातीं हैं ग़र चाहकर भी इज़हार ना कर पाओ

पर इक बार मरना बेहतर है तिल-तिल मरने से

ग़र दोनो तरफ किसी को भी करार ना मिले

मैं नहीं चाहता तू भी भटके इसी भँवर में मेरी तरह

तेरी बाँहों को पकड़कर अंदर कँहीं तूझे खिँच ना लाए

मेरी जिंदग़ी का कोई ठिकाना है कहाँ

डर है कँही इस भँवर में तुझे तड़पता छोड़ ना जाएँ


मैं-मैं में और यूँ खेाना नहीं चाहता मैं

इस मैं को ही निकाल फेंका है जिंदगी से

कँही ये तुझको चुरा के ले ना जाए

मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना


मत कर, मत कर, मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना

के तेरे इस भरोसे के लायक कहाँ हूँ मैं

अँतरिक्ष है तू तो बस एक आसमाँ हूँ मैं

है मेरी पँहुच से दूर उसी तारे की तरह

जिसे देख सकता हूँ बस मग़र,

क्या करूँ आखिर मामूली इन्साँ हूँ मैं

आखिर मामूली इन्साँ हूँ मैं…

यही चाहत है कि चाहे हम बेइन्तिहाँ तड़पे

मग़र तू सदा यूँही मुस्कुराए

मत कर भरोसा मुझपर ऐ! जानेजाँ इतना, मत कर…….!