अध्याय 64 ॥ विचार ॥
10 मई 2018
एक अरसे से इस जहन में कोई विचार आया नहीं
बहुत ख़ंगाला दर्दों को मगर कोई गुबार आया नहीं॥
लकड़ी, हड्डी, जिस्म, जिंदगी, रूह सब जल गए
इस ठन्डी चिता के हिस्से पर कोई अंगार आया नहीं॥
दिन की लपट और रातों की कालिख सभांल के रखी थी
पर वो मुद्दतों से माँगने दुबारा कोई उधार आया नहीं॥
बंजारों सी मुफलिसी आया करती थी कभी-कभार
हाल तक पूछने भी पल कोई खुशगंवार आया नहीं॥
एक अरसे से इस जहन में कोई विचार आया नहीं
बहुत ख़ंगाला दर्दों को मगर कोई गुबार आया नहीं॥