अध्याय 59 ॥ वियोग ॥
1 मई, 2016
कुछ आयतें किसी भी अजान तक पहुँचती नहीं है
दुआएँ आजकल उसके कान तक पहुँचती नहीं है ॥
इस दुनिया को जब आँसुओं की कदर ही नहीं है तो
सिसकियाँ मेरी भी अब जुबान तक पहुँचती नहीं है ॥
कैसे झेलूँ ग़र सालों के सपनें एक पल में टूट जाएँ
हिम्मत मेरी अभी उस इम्तहान तक पहुँचती नहीं है ॥
उन्हें छोड़ना पड़ा तो बहुत दिलासा दिया उन्हें की
सच्ची मोहब्बत कभी परवान तक पहुँचती नहीं है ॥
ये दुनिया दबा के रखती है जमीं को सदा पैरों तले
वो उछले भी तो अपने आसमान तक पहुँचती नहीं हैं॥
प्यार को फलसफों तक बाँध कर रखता है ये समाज
ये बातें कभी किसी जिंदा इंसान तक पहुँचती नहीं हैं ॥
इन मस्जिदों से बाहर भी एक दुनिया है उसे समझा
ये किताबें मेरे रुह-ओ-इत्मिनान तक पहुँचती नहीं है ॥
कुछ आयतें किसी भी अजान तक पहुँचती नहीं है
दुआएँ आजकल उसके कान तक पहुँचती नहीं है ॥