अध्याय 41 ॥ लोगों के ताने ॥
19 जून, 2015, मेरी नौकरी नहीं थी और दिन-ब-दिन धक्के खाता था। लोग सोचते थे ये कुछ नहीं करेगा और पीछे हँसते थे, तरस खाते थे, ताने देते थे। पर कैसे कहता मेरी मंजिल तुम से बहुत बड़ी है।
चलो माना हम कमज़ोर हैं, ज़िन्दगी से हारे हैं।
तुम बताओ तुर्रम खाँ तुमने कौन से तीर मारे हैं॥
हूज़ूर देर लगती है उगने में नीम और बड़ को
पर कीकड़ सोचनें लगें हैं कि उन्ही के दम पे नज़ारे हैं॥
अब तुम छोटे पेड़ पकड़ कर चढ गये जल्दी ऊपर
मैं क्या करूँ, मेरी मंजिल तो फ़लक के चाँद तारे हैं॥
ये मैं जानता हूँ, मेरे हालात पे तू कितना परेशाँ है
तुझे ज़रूर याद रखेगें, हम तेरे इतने जो प्यारे हैं॥
एक पर एक करके नाकामियाँ दबा देती है इंसान को
फिर भी हम जुर्रतों से नहीं जरुरतों से नकारे हैं॥
मेरी मंजिल से कहना थोड़ा रुक, थोड़ी सी मौहलत दे
हौंसले टूटेगें नहीं, जब तक जिन्दगी के इस किनारे हैं॥
चलो माना हम कमज़ोर हैं, ज़िन्दगी से हारे हैं।
तुम बताओ तुर्रम खाँ तुमने कौन से तीर मारे हैं॥