अध्याय 30 ॥ संस्कृति ॥

14 अक्टूबर 2012, इन पेजों से मै एक समूह या कहिये एक संप्रदाय से जुड़ा जिन्हे कविताओं का और गज़लों का बहुत शौक था। और दुष्यॅंत कुमार के बारे में पढ़ते-पढ़ते मुझे भी इस लेखनी की विधा से प्यार हो गया था। अब मैं खुद को सहज और स्वछंद रूप से गज़लों में अभिव्यक्त कर सकता था ।।

॥ संस्कृति ॥


क्यूँ मेरी संस्कृति मिट रही है आज

कहाँ बंसी के सुर गुम हो गए हैं आज।


बेटे को कहा संगीत में रब बसता है

गिटार घर में नया आ गया है आज।


कर्म से होता था कभी वर्ण विभाजन

सब मज़दूरों को शूद्र बना दिया है आज।


मुरली की तान पे त्रिभुवन अब नहीं डोलता

रॉक, बैंड और शोर का फैशन चला है आज।


अंग्रेजी ना बोलूँ तो अनपढ़ कहलाऊॅं

गुलामी से आखिरकार हम आज़ाद हैं आज।


ऑफिस में धोती पहनूँ तो डाँट पड़ती है बॉस की

आधे नंगे कपड़ों में भारत खड़ा है आज।


रोता है, कहता है क्या बदला बताओ मुझे

हर तरफ फैला बस ब्रिटिश राज ही तो है आज।


॥क्यूँ मेरी संस्कृति मिट रही है आज॥

॥कहाँ बंसी के सुर गुम हो गए हैं आज॥