अध्याय 56 ॥ मोक्षा ॥
24 मार्च, 2016
बस इतनी सी सौगात मुझे मेरे ईलाही दे।
इस जिस्म की कैद से मुझे जल्द रिहाई दे॥
मेरी रूह उनकी रुह की आवाज सुन सके
उसके बाद चाहे मुझे कुछ भी ना सुनाई दे॥
हम बेगुनाह पाक उड़ते फरिश्ते थे बस यूहीं
तू खुद आकर फिर समाज को ये गवाही दे॥
सब समझते हैं कुछ गुनाह कर बैठे थे हम
उस दुनिया में तो कमसकम हमें बेगुनाही दे॥
इन आँखो में थे उनके लिए हसीं सपने कितने
मेरे आँसुओं में उनको वो सब दिखाई दे॥
ये जिंदगी, ये साँसे, ये दर्द तू ही रख, मेरे मौला
मुझे बस उस आजाद चमन की रहनुमाई दे॥
और झेल नहीं सकता इस दुनिया का बोझ मैं
मुझे अब गमुनामी, अधेंरा और सिर्फ थोड़ी तन्हाई दे॥
बस इतनी सी सौगात मुझे मेरे ईलाही दे।
इस जिस्म की कैद से मुझे जल्द रिहाई दे॥