अध्याय 55 ॥ माफीनामा ॥

24 मार्च, 2016


॥माफीनामा॥


कौन पागल डरता है मौत के आने से

मैं डरता हूँ सिर्फ तेरे छोड़ के जाने से॥


एक आखिरी कोशिश तो बनती ही है

क्या फायदा बाद में ताउम्र पछताने से॥


हो सके तो हमें माफ कर देना मेरी जाँ

शमा की जिंदगी जल गई इस परवाने से॥


तेरे साथ मैं एक इतिहास लिख सकता हूँ

कुछ मीर के शेर कुछ मीरा के फसाने से॥


हम नहीं तो कौन संभाल सकता है तुम्हें

जा के पूछ ले अपने उस नाराज जमाने से॥


ये रीति रिवाज बेकार हैं समझाओ इन्हें

खुद बन जाते हैं रिश्ते महज़ अपनाने से॥


जुड़ जाए तो पल काफी है दिलों के लिए

नहीं तो टूट जाते हैं रिश्ते सालों पुराने से॥


उनकी आँखों पे गहरा लाल चश्मा चढ़ा है

वो लहू ही देखेंगे, मीठा पानी भी दिखाने से॥


तू हारेगा नहीं क्योंकि तेरा दिल साफ है

रास्ते बनते हैं मुकाम पे दिल लगाने से॥


अपनी मंजिल किसी और से नहीं पूछते

जिंदगी बनती है खुद आगे बढ़ के बनाने से॥


तू कहीं भी रह तू मेरे रूह का ही हिस्सा है

और रुह अलग नहीं होती काटने या जलाने से॥


इस समाज की औकात नहीं है समझने की

आखिर गौरा को औघड़ क्यूँ लगते हैं सुहाने से॥


उनकी सारी की सारी मुरादें पूरी कर मेरे मौला

चाहे वो पूरी हो सिर्फ मेरी बली चढ़ाने से॥


कौन पागल डरता है मौत के आने से

मैं डरता हूँ सिर्फ तेरे छोड़ के जाने से॥