अध्याय 54 ॥ ख्वाब ॥

13 मार्च, 2016


॥ख्वाब॥


मेरे ख्वाब टूट कर बिखर जाते हैं मुझे यूँ जगाया ना करो

तुम बनकर एक दिलकश ख्वाब मेरे ख्वाबों में आया ना करो ॥


ताउम्र साथ निभाने का इरादा है तो जहाँ कहो वहाँ चलेंगे

वरना यूँ हाथ थाम कर हमें घर से ले जाया ना करो ॥


अरे ललचाने की भी कोई तो हद होती होगी मेरी जाँ

एक जोगी को अपने गले का तिल यूँ दिखाया ना करो ॥


और कितना होश संभाल पाऊंगा मैं कुछ तो तरस खाओ

मुझ बदनसीब को इतना कस के गले लगाया ना करो॥


ये डर हैं हमें की हम ही तुम्हारे दुश्मन ना बन जाएँ कहीं

इन नाजुक-नाजुक होंठों से हमसे प्यार जताया ना करो


कब किसे कौन पसंद आ जाए ये कौन जानता है भला

इश्क के मरीज को फिजूल दुनियादारी समझाया ना करो॥


या तो मेरा साथ दो या मुझे दूर ही रखो अपने रिवाजों से

वो हैं हमसे अलग ये बात हमें रोज सुनाया ना करो ॥


बंद कर अपनी लीला के अब मेरी जान चली जाती है

मेरे हालात पे तुम इस तरह चुपचाप मुस्काया ना करो ॥


मेरे ख्वाब टूट कर बिखर जाते हैं मुझे यूँ जगाया ना करो

तुम दिलकश ख्वाब बनकर मेरे ख्वाबों में आया ना करो ॥