अध्याय 23 ॥ खुशियों का समाकलन ॥

26 फरवरी, 2015 मैंने जो चंद दिनो पहले कविता लिखी थी (सफलता का महामंत्र) उसके अलावा भी जीवन का एक पहलू था। मैं उस पहलू को भी लोगों के आगे लाना चाहता था।


॥ खुशियों का समाकलन ॥


जिसे देखो बड़ा घर, बड़ा मकान, बड़े लोग, सब कुछ बड़ा

हर कोई कुछ बड़ा चाहता है पर छोटी बातों की अब किसी को क़दर नहीं


पूछा था मैनें एक दिन उस ग़रीब लाला से

की कितना बच जाता है इस छोटे खोखे से

उसने कहा तिनका तिनका जोड़कर मुश्किल से गुजारा होता है

हर टॉफी से एक आध बचता है तो दो जून गँवारा होता है

2 दुकाने और हैं बेटों के पास, बस कुछ एक हजार में कमाई है

हर एक दुकान से शायद कुछ दस या बाराह होता है

पाँच साल से जोड़े तो आखिरकार अब एक मकान भी ले लिया

ईतना काफी है सब साथ हैं, सब खुश हैं अब और कोई फिकर नहीं

हर कोई कुछ बड़ा चाहता है पर भाई छोटी बातों की अब किसी को क़दर नहीं


मैं अब भी असमंजस में था तो वो फिर बोला, बचुआ

अपना हाथ देखो, देखो हथेली और फिर नीचे छोटी सी अंगुलियाँ

सोचो अगर इसपे केवल एक खुर मुट्ठी के बराबर हो

तो क्या वो सब काम कर पाते जो अब कर लेते हंसकर हो,

लिखना पढना लटकना चढना या कुछ और

इन अंगुलियों के बिना तुम केवल एक दुपाये जानवर हो

सोचो अगर ये शरीर हो एक सौ पाँच फुट का, पर ये छोटे पैर न हों तो

एक विशालकाय ठूँठ सा निश्चल , निश्प्राण जीवन हो तों

सोचो अगर आदमी तुम संसार के सबसे दौलतमंद हो

पर ना घर , ना दोस्त , ना प्यार , ना रिश्ते चंद हों

सोचो अगर तुम सेहत गँवा के संसार की सबसे बड़ी खोज कर गये

तो फिर भी क्या हंस पाओगे ग़र चलने, फिरने और बोलने से भी तुम गये

जीवन बड़ी बातों का अवकलन नहीं छोटी छोटी बातो का समाकलन है

हमें छोटी छोटी विनम्रता चाहिये एक बड़ी सी अकड़ नहीं

हर कोई कुछ बड़ा चाहता है पर छोटी बातों की अब किसी को क़दर नहीं


आज समझा मैं के ये छोटी खुशियाँ ही जिन्दगी का असली आनन्द है

जैसे छोटा मुखड़ा ही गीत का सबसे मुख्य छंद है

जैसे कई महान गुरुओं से ज्यादा ज्ञानी ये लाला फ़कीरचंद है

तो जाओ ढूँढों वो विलुप्त डायनासोर सा कुछ बड़ा अपना

पर मुझे रहने दो मेरी इन छोटी खुशियों के पास

के जब मैं मरुँ तो एक पल गवाँने का भी कोई गिला ना जाये साथ

मैं जानता हूँ ईस लालची संसार पे हम छोटों की बातों का कोई असर नहीं

यहाँ दौलत की होड़ है पर प्यार-ओ-सुकून की यहाँ कोई गुजर नहीं

अब कोई भला खुश कैसे रहे ऐसी दुनिया में जब

हर कोई कुछ बड़ा चाहता है पर छोटी बातों की अब किसी को क़दर नहीं