अध्याय 57 ॥ हत्या ॥
19 अप्रैल, 2016
जिंदगी अब और सही जाती नहीं है
मौत भी पर कम्बख्क्त मुझे आती नहीं है ॥
जानता हूँ जान देना बुज़दिली है मगर
खुद-ब-खुद जान भी निकल पाती नहीं है ॥
कोशिश की हमने उन्हें भूलने की बहुत
पर इन साँसों से उनकी खुशबू जाती नहीं है ॥
दौलत और हवस ही बस देखते हैं ये
मोहब्बत ज़लील दुनिया समझ पाती नहीं है ॥
वो कहते हैं की हर सवाल का जवाब है
क्यूँ फिर जिंदगी कोई हल दिखाती नहीं है॥
इन महफिलों से मुझे यारो दूर ही रखो
इस टूटे दिल को अब खुशियाँ भाती नहीं है ॥
नजर आते हैं तेरे सपनें हर जगह मुझे
ये नाचती दुनिया मुझे नजर आती नहीं है ॥
खुदा से जाकर पूछूँगा मैं ये सवाल सारे
दुआँए आजकल उस तक पहुँच पाती नहीं है ॥
जिंदगी अब और सही जाती नहीं है
मौत भी पर कम्बख्क्त मुझे आती नहीं है ॥