अध्याय 32 ॥ दामिनी काण्ड ॥

19 दिसम्बर 2012, दिल्ली में दामिनी काण्ड हुआ। ये एक दिल दहला देने वाला काण्ड था। बल्कि ये कहना भी जरूरी है की ये एक अमानविय अपराध था। उसके उपर बस यही लिख पाया ।

॥ दामिनी काण्ड ॥


इतनी लाचार जिंदगी, की अब जी नही जाती

हॅंसने की कोशिश भी कॅंरू तो हॅंसी नही आती


कोई तो आकर करो हमें इस मुल्क से रिहा

नफरत भरी इन गलियों में अब रोशनी नही जाती


मै हर पल तुझे यूँही बस देखता तो रहूँ जानेजाँ

पर इससे मेरे घर की जि़म्मेदारी नहीं जाती


बुड्ढे हैं की उनका कभी भी खून नहीं खौलता

जवान है की उनसे सियासत उठाई नहीं जाती


काग़जों में तो मैं गरीबी रेखा से हूँ बहुत ऊपर

किसे परवाह ग़र तीज में मेरे घर मिठाई नहीं जाती


क्यूँ बोला, तू चुप रह, आज यहाँ यही रिवाज़ है

क्या बलात्कारी के साथ बेटी बिहाई नहीं जाती


ज्ञान की गंगा को सूखे हुए अब ज़माना बीत गया

पढ़ा लिखा कहलाने के लिये दर-ब-दर डिग्री नहीं जाती


इन पन्नों पर चिपक रह जाए मेरी आवाज़ तो क्या

तेरे चट्टानी दिल के पार तो कोई चीख भी नहीं जाती


सुनसान खोखले शब्दों से दर्द किसी का मिटा है भला

बगैर हमदम ग़ज़ल कोई इश्क-ए-मिजाज़ी नहीं भाती ।।


॥इतनी लाचार जिंदगी, की अब जी नही जाती॥

॥हॅंसने की कोशिश भी कॅंरू तो हॅंसी नही आती॥