अध्याय 70 ॥ बकरे कि माँ ॥
01 जून 2018
बहुत भले थे दिन वो माँ जो गुज़रे तुझ संग बाढे़ में
हम-तुम सोया करते थे चिपक के दोनो जब जाड़े में
बहुत भले थे दिन वो माँ
चंपा का वो घर मैया
और उसके गुड्डों के सैंया
वो उसकी पूरी 24 गैया
सुनंदा, नंदा और गौरया
कूदा, फाँदा करते थे
मैं, वो और उसके भैया
छप-छप नदी में खेलते थे
सोते थे कदम्ब की छैंया
मीठे-मीठे बेर खाते
खाते थे हरी हरी पत्तियाँ
माता जी भी तो हमको
उसके संग सुलाती थी
गोद में उसके लुटाती थी
संग में खाना खिलाती थी
क्या हुआ जो प्रेम उनका
पल में ही यूँ नष्ट हुआ
क्या किया मैंने ऐसा
कि मुझको उन्होने बेच दिया