अध्याय 43 ॥ आदमी की जड़ ॥

28 जुलाई, 2015


॥ आदमी की जड़ ॥


जड़ें उखड़ने लगीं हैं इन्हे फिर से जमाना होगा।

लगता है मुझे गाँव में एक नया घर बनाना होगा॥


बच्चे रिश्तेदारी निभाने से अब कतरानें लगें हैं।

अब बेटी को अपनी ही बिरादरी में बिहाना होगा॥


ये यथार्थवादी खुद अपनी बोली बोलनें में शर्माते हैं।

इस पीढ़ी को एक पाठ रवादारी का भी पढ़ाना होगा॥


उड़ता उड़ता अब मैं घर से बहुत दूर आ चुका हूँ

कमसकम एक पैर तो उस ज़मीन पे भी टिकाना होगा॥


तुम्हारे शहर के सब दरख्त इमारतों में लग चुके हैं

अब तो चट्टानों में ही किसी कोयल का ठिकाना होगा॥


मेरे दादा को तमाम फसलें-ओ-मौसम-ओ-पंछी याद थे

मेरे बच्चों को कुछ तो मुझको भी सिखाना होगा॥


जब जो होगा सो होगा मैं क्यूँ अभी इसका ग़म करूँ

कुछ तो एतबार मुझे उस छलिये पे भी लाना होगा॥


एक इज़्ज़त की जिंदगी दे फिर मौत का ग़म नहीं

मौत तो बस मेरे मालिक से मिलने का बहाना होगा॥


जड़ें उखड़ने लगीं हैं इन्हे फिर से जमाना होगा।

लगता है मुझे गाँव में एक नया घर बनाना होगा॥